वानी

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ब्लैक बैंगल्स चैप्टर 43

ब्लैक बेंगल्स चेप्टर 43

                 दीपक की शादी

अब तक आपने पढ़ा यश ज्योति को हल्दी लगाता है... ज्योति अपने दिल मे दबे एहसासों को जनम लेने से पहले ही दफना देती है देवांश कराची लौट जाता है जिसपर ज्योति को विश्वास नही होता है... 

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"अब आगे"

केरला 

"विराज का घर"

विराज की सुबह 8 बजे नींद खुलती है... विराज बेड पर बैठे हुए ही सोचता है... "इतने दिन हो गए... अब पता लगाने की कोशिश करनी होगी.... और इसके लिए मुझे ज्योति से पता करना होगा" 

तभी विराज का फोन बजता है... विराज फोन देखता है तो उसपर डैड नाम फ्लेश हो रहा था विराज कॉल उठाते हुए कहता है "गुड मोर्निंग डैड.... क्या बात है आज इतनी सुबह सुबह" 

मिस्टर करियप्पा कहते हैं "गुड मोर्निंग मेरा बेटा.... मुझे तुम्हे ये बताना था की दिल्ली मे कबीर की कोई पार्टी होने वाली है... जिसमे उसने ज्योति को भी बुलाया है... तो तुम भी दिल्ली आ जाओ... और अपने सवालो के जवाब मांगो..... लेकिन ये पार्टी कोई नॉर्मल पार्टी नही है.... तो ध्यान से"

विराज हस्ते हुए कहता है "डैड आप मुझे जवाब लेने के लिए बुला रहे हैं या..... उसकी सुरक्षा करने के लिए "
मिस्टर करियप्पा हस्ते हुए कहते हैं "वैसे तो उसे ज़रूरत नही है लेकिन फिर भी.... मै चाहता हूँ तुम उसके साथ उस पार्टी मे जाओ"

विराज सीधे बैठते हुए कहता है "जो हुकुम डैड' और हस देता है मिस्टर करियप्पा हस्ते हुए कहते है " नौटंकी जायेगी नही तुम्हारी" विराज हस्ते हुए कहता हैं... "क्या करू डैड आदत से मजबूर" विराज की बच्चो जैसी बातें सुन मिस्टर करियप्पा हस देते हैं और कहते हैं "ठीक है रैडी होकर आने की तैयारी करो टेक केयर" इतना केहकर मिस्टर करियप्पा कॉल कट कर देते हैं.. और विराज भी फ्रेश होने चला जाता है... 

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"पटना"

सुबह से ज्योति के घर पे चेहेल पेहेल थी बारात जो जानी थी... दीपक की ज्योति भी सुबह से काम मे लगी थी.... दोपहर हो चुकी थी... उमा जी ज्योति से केहती हैं "सारा काम हो गया है... जाके तैयार हो जा बारात नीकलने का समय हो जायेगा"
ज्योति हाँ केहकर तैयार होने चली जाती है

ज्योति अपने कमरे मे आकर अपना लहेंगा पहनती है... फिर खुद को शीशे मे देखने लगती है.... "देखो मिस्टर हैंडसम तुम्हारे सपनों को अपना मानकर पूरा कर रही हूँ.... फिर जिंदगी ये मौका दे या ना दे"

इतना केहकर ज्योति तैयार होने लगती है.. मैचिंग चूड़ियाँ कलीरे वाली... माथे पर छोटी बिंदी.... पैरों मे पायल और हल्की लीपस्टिक और हल्के मेकउप मे आज ज्योति कमाल लग रही थी... खुद को एक नज़र देख ज्योति कमरे से बाहर निकल जाती है... 

ज्योति जैसे ही नीचे आती है सामने से उसे अंकित आता हुआ दिखता है ज्योति उससे पूछती है "भइया तैयार हो गए"
अंकित मुस्कुरा कर कहता है... "हाँ हो गए.. आज तुझे देखकर पहली बार बड़ी बहन मानने का मन कर रहा है"

अंकित की आँखो मे नमी देख ज्योति मुस्कुराते हुए केहती है "फिकर मत कर इतनी जल्दी मैं कही नही जाने वाली" और वहाँ से चली जाती है

अंकित भी अपने काम मे लग जाता है...... 4 बजे के करीब बारात नाचते गाते चल पड़ती है लड़की वालों के घर.... ज्योति भी अपनी सारी फिकर छोड़ नाच कर रही थी.... और उसकी उस बेफ़िकर मुस्कान और खुले बालों मे किसी का दिल उलझता जा रहा था... ये और कोई नही यश था... 

यश ज्योति को देखते हुए खुद से ही कहता है:-

कुछ संवरी सी, कुछ बिखरी सी है वो...
थोडी़ बचकानी, जरा सरफिरी सी है वो...!!!
...
अपने किस्से खुद ही सुनाती....
इसीलिये सबकी चर्चा में रहती...
कुछ और थी, कुछ और है...
आधे अधूरे लम्हे लिए खुद ही सँवरी है वो
थोडी़ सम्भली पर...जरा आज भी बिखरी सी है वो...
...
थोडी़ बचकानी, जरा सरफिरी सी है वो...!!!
....
...
मुसकुराती आँखें, हँसता चेहरा...
दिल मे बसने को और क्या चाहिए....!
लबों पे शरारत, निगाहो में नयी जुबान...
हर वक्त हँसने को और क्या चाहिए...!
खुद और खुदा की परवाह करती..
बस बाकी बेफिकरी सी है वो..!
...
थोडी़ बचकानी, जरा सरफिरी सी है वो...!!!
...
...
अपनी आवाज के नरम लहजे में...
गर्मजोशी का पैगाम सुनाती...!
कुछ गुल उम्मीदों के खिलाकर...
इक आशियाना हवा में बनाती..!
किसी से छिपना, फिर उसी के सामने आना...
वो शरमाना जरा भी नही जानती...!
कुछ वक्त ने बिगाड़ा..कुछ खुद ही निखरी सी है वो...
थोडी़ बचकानी, जरा सरफिरी सी है वो...!!!
.....
.....
मिला जब मै उससे...
लगी मुझे बचपन सी वो..!
जश्न-ए-जिन्दगी मनाती...
दिखी ठोकरो से परे परे ही वो..!
लम्हा दो लम्हा हँस लेती...
कभी अश्क खुद के पी लेती...!
गुजरा था जो वक्त उसके साथ...
एक बगवा, एक बहार है..!
आयेगा क्या वक्त लौटकर..
बस अब इसी का इन्तजार है..!
सब है एक पुरानी दास्तान...
अब इक याद भूली बिसरी सी है वो...!
कुछ संवरी सी, कुछ बिखरी सी है वो 
थोडी़ बचकानी, जरा सरफिरी सी है वो...!!!
जरा सरफिरी सी है वो...!!!
जरा सरफिरी सी है वो...!!!
जरा सरफिरी सी हो तुम..।

यश को खुद को ऐसे देखता देख ज्योति उसके पास आती है और पूछती है "ऐसे क्या देख रहे हो"

यश कुछ नही कहता है... और वहाँ से चला जाता है..... ज्योति उसे तब तक देखती है जब तक वो उसकी आँखो से ओझल नही हो जाता है फिर वो भी सबके साथ नाचने लगती है..... 

बारात अपनी मंज़िल के लिए निकल जाती है और घर की औरतें वापस घर आ जाती है.... घर आकर सारी औरतें रेस्ट करने चली जाती हैं..... और ज्योति अपने भाई का रूम सजाने चली जाती है

ज्योति उस रूम को बहुत ध्यान से देख रही ती.... फिर उस रूम को सजाने लगती है... तभी वहाँ एक लड़की आती हैं जिसकी उम्र कुछ 30-32 होंगी.... ज्योति को पीछे से बाहों मे भरते हुए केहती बेहद ही अदा से केहती है "हाय ज्योति क्या बताऊ कितनी हसीन होती है ये रात.....तेरी सुहागरात पर भी कमरे को ऐसे ही सजाया जायेगा... फिर वो धीरे से आयेगा फिर"

ज्योति उस लड़की की बात काटते हुए उससे दूर जाते हुए केहती है "दीदी आप फिकर मत करो यहाँ का काम खतम करके आपका ही रूम सजाऊंगी.,.... ताकि आप भी कल की रात इंजॉय कर सको"

ज्योति की दीदी हस्ते हुए केहती है "अब मेरा नही तेरा टाइम है चल मै तुझे बताती हूँ"
इतना केहकर वो ज्योति का हाथ पकड़कर उसे बिठाती है,.... और सर पर लहेंगे का दुपट्टा रख देती है ... फिर खुद ही उठाते हुए केहती है.... "ऐसे धीरे से घूँघट हटायेगा.... फिर पहले हाथ पकड़ेगा फिर".. 

ज्योति उसकी बात काटते हुए हाथ हटाते हुए केहती है " फिर मार खायेगा.. और अब आप प्लिज़ यहाँ से जाओ और मुझे मेरा काम करने दो " और उसे वहाँ से बाहर निकाल देती है.. 

रूम सजाते हुए ज्योति को दो बज जाते हैं..... वो अपने कमरे मे आती है और बेड पर बैठ कर कुछ सोचने लगती है फिर उठ कर छत पर बने झूले पर बैठ जाती है... और उस चांदनी रात को देखने लगती है... 
तभी उसका फोन बजता है.... ज्योति फोन उठा कर "हाँ बोलो"
सामने से आवाज़ आती है "देवांश पुणे जायेगा कुछ दिन मे"
ज्योति फिर पूछती है "अभी वो कहाँ है"
सामने से आवाज़ आती है "कनाडा गया है... लेकिन क्यों गया है..ये जानना मुश्किल है"

ज्योति केहती है "ठीक है नज़र रखो" इतना केहकर ज्योति कॉल कट कर देती है........ 


"हाँ ऐसी ही हूँ मै... 

कभी फूल सी कोमल तो कभी काँटों सी तेज़
हाँ ऐसी ही हु मै!!! 

कभी सागर सी गहरी तो कभी शीशे सी साफ
हाँ ऐसी ही हु मै!!!! 

बहुत सी खराबियां है मुझमे लेकिन अच्छाई भी है
हाँ ऐसी ही हु मै!!!! 

अपनो के लिए बहुत अपनी बहुत गैर भी हु
हाँ ऐसी ही हु मै!!! 

बहुत भोलि  हु मै बहुत चालाक भी हु
हाँ ऐसी ही हु मै!!! 

आँखो मे आंसू बहुत है फिर भी खामोश हु मै
बस ऐसी ही हु मै!! 
@secret writter


क्या चल रहा है यश के दिमाग मे? क्या करने वाली है ज्योति "
जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी कहानी "ब्लैक बेंगल्स"

मिलते हैं अगले चेप्टर मे






       ............. बाय बाय.........

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4 Comments

madhura

11-Aug-2023 07:21 AM

Nice part

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Varsha_Upadhyay

01-Feb-2023 07:02 PM

Nice 👍🏼

Reply

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:59 PM

Nice part 👌

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